Sunday, May 17, 2020

ईश्वर का स्वरुप

                                                                    ईश्वर  का स्वरुप


विश्व का सबसे विवादास्पद  प्रश्न है कि "ईश्वर का कोई अस्तित्व है अथवा नहीं ?" यदि आज की युवा पीढ़ी से यह प्रश्न पूछ लिया जाये तो अधिकतर युवा शून्य में निहारने लगते हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें इस प्रश्न के बारे में सोचने का कभी अवसर ही न मिला हो। फ़िर ,मस्तिष्क पर थोड़ा जोर डालने के बाद उनका उत्तर होता है कि शायद हाँ ,क्योंकि कई बार "उलझन " या confusion की स्थिति में उन्हें ऐसा मार्गदर्शन प्राप्त हुआ जिससे उन्हें सही समाधान मिला , किन्तु फिर भी वे निश्चित रूप से कुछ कह नहीं सकते।


विश्व के महान वैज्ञानिकों जैसे कि अलबर्ट आइंस्टीन ,मैक्स बोम,लार्ड विलियम केल्विन,इसाक न्यूटन ,मीचिओं काकू ,टेसला ,लुइस पॉस्चर  इत्यादि के अनुसार ईश्वर निश्चित रूप से है.निम्न वीडियो उनके विचारों को विस्तार से बताता है.

 

आज की युवा पीढ़ी ईश्वर के विषय में इसलिए भी स्पष्ट नहीं है क्योंकि उसे ईश्वर के स्वरुप का स्पष्ट ज्ञान नहीं है। 
यदि ईश्वर के गुण स्पष्ट रूप से मस्तिष्क में बैठ जाएँ तो फिर किसी प्रकार का असमंजस नहीं रह जाएगा।

महर्षि दयानन्द सरस्वती के अनुसार ईश्वर के गुण निम्न हैं :
ईश्वर सच्चिदानंदस्वरूप,निराकार ,सर्वशक्तिमान,न्यायकारी,दयालु,अजन्मा,अनंत,निर्विकार,अनादि ,अनुपम,सर्वाधार,सर्वेश्वर,सर्वव्यापक,सर्वान्तर्यामी ,अजर,अमर,अभय,नित्य ,पवित्र और सृष्टिकर्ता है.उसी की उपासना करनी योग्य है।

जिसने भी ईश्वर के सही स्वरुप को इन २२ गुणों के माध्यम से समझ लिया , उसका ईश्वर के प्रति अटल विश्वास कोई डगमगा नहीं सकता।
आइए ,अब इन गुणों  को एक-एक करके विस्तार से समझते हैं :

ईश्वर सच्चिदानंद स्वरुप  है:  सच्चिदानंद =सत +चित+आनंद 
1.ईश्वर सत है।२.ईश्वर चेतन है। अर्थात ,ईश्वर का अस्तित्व है और ईश्वर सदा से है। यह सम्पूर्ण ,अनंत , विशालकाय ब्रम्हांड जिसमे अरबों आकाशगंगाएं विद्यमान है, ईश्वर द्वारा ही नियंत्रित एवं संचालित होता है। प्रत्येक आकाशगंगा में अरबों सौर मंडल हैं। प्रत्येक सौर मंडल में अनेकों ग्रह तथा उपग्रह अपनी -अपनी कक्षाओं में नियमित रूप से परिक्रमा कर रहे हैं। इनमें से अनेकों ग्रहों में जीवन है। इतनी विशाल संरचना कएवं खरबों जीवों के जीवन का संचालन क्या अपने आप हो रहा है??या, कोई चेतन शक्ति है ,जिसने अपनी इच्छाशक्ति (ईक्षण )द्वारा इस अनंत प्रकृति को नियमों में बाँध रखा है??उदाहरणस्वरूप, प्रत्येक ग्रह अपने-अपने सूर्य के चारों ओर एक कक्षा में एक नियम के अनुसार ही चक्कर काटता है। यदि ,उसका एक चक्कर लगाने का समय १ सेकंड भी काम या अधिक हो जय,तो सृष्टि का विनाश हो सकता है। इसी प्रकार विभिन्न परमाणुओं में भी इलेक्ट्रॉन  एवं प्रोटॉन ,न्यूट्रॉन के चरों ओर अपनी अपनी कक्षा में एक निश्चित समय में एक चक्कर पूरा करते हैं। 

इसी प्रकार, यदि यह मान लिया जाय कि इस ब्रम्हांड की उत्पत्ति का कारण बिग बैंग थ्योरी है, तो भी न्युटन के गति के नियम की सहायता से हम सिद्ध कर सकते हैं की ईश्वर की सत्ता निश्चित रूप से है। 
न्यूटन का नियम कहता है कि , " भौतिक पदार्थ यदि गतिहीन अवस्था में है तो गतिहीन ही रहेगा ,जब तक बाहर से उसे गति नहीं दी जाती। इसी प्रकार ,यदि कोई पदार्थ गति की अवस्था में है ,तो गति की अवस्था में ही रहेगा , जब तक बाहर से गति का प्रतिरोध नहीं होता" 
अतः, प्रश्न यह उठता है की यदि ब्रम्हांड की उत्पत्ति के पूर्व प्रकृति के परमाणु यदि स्थिति  की अवस्था में थे तो उन्हें गति किसने प्रदान की?यदि सीधी  गति की अवस्था में थे तो उनकी गति में परिवर्तन किसने किया, जिसके कारण ये परमाणु संयुक्त होकर पृथ्वी आदि पदार्थों के रूप में परिणित हो गए। 
चूंकि स्थिर वस्तु को गति देना और गतिशील वस्तु  की दिशा बदलना , यह दोनों कार्य किसी चेतन कर्ता (शक्ति) के बिना सम्पादित नहीं हो सकते , इसी अपार चेतन शक्ति को ईश्वर कहा गया। 
अतः, यह सिद्ध होता है की ईश्वर की सत्ता है एवं वह चेतन है। 




उपरोक्त वीडियो भी वैज्ञानिक आधार पर यह सिद्ध करता है कि ईश्वर की सत्ता है तथा वह चेतन है। 

३. ईश्वर आनंदस्वरूप है। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में "सुख" एवं "दुःख "आते -जाते रहते हैं। जब भी किसी वस्तु या व्यक्ति के कारण हमें सुख की प्राप्ति होती है ,तो उस व्यक्ति या वस्तु  के लिए हमारे भीतर " राग " उत्पन्न हो जाता है। इसी प्रकार जब किसी  भी व्यक्ति या वस्तु  के कारण  हमें दुःख प्राप्त होता है, तो उस व्यक्ति या वस्तु के लिए हमारे भीतर "द्वेष "उत्पन्न हो जाता है। किन्तु, ईश्वर निर्विकार होने के कारण "राग " एवं " द्वेष" से परे है।
अतः ईश्वर से मिलन की स्थिति में "सुख" अथवा "दुःख"का अनुभव होना संभव नहीं है। जो अनुभव हमें ईश्वर से मिलन  की स्थिति में होता है,वह "सुख" एवं "दुःख" से परे है और इसे "आनंद "की अवस्था कहते हैं। इसी कारण ईश्वर आनंदस्वरूप है। 
अब प्रश्न यह उठता है कि आत्मा के परमात्मा से मिलन का अनुभव कैसे संभव है?तो, इसका उत्तर है कि यह अनुभव केवल "ध्यान " की अवस्था मे ही किया जा सकता है।बल्कि ,यदि सच कहा जाए तो "ध्यान "तो एक प्रतीकात्मक शब्द है,ईश्वरीय अनुभव तो वास्तव में" समाधि "की अवस्था मे होता है।"ध्यान "एवं "समाधि" की अवस्थाओं का वर्णन महृषि पतंजलि रचित "योग दर्शन " में योग के आठ अंगों में समझाया गया है।
योग का अर्थ भी है -ईश्वर का आत्मा से मिलन।परमात्मा का जीवात्मा से मिलन। 
"ध्यान" इस विश्व को भारत वर्ष की एक अनमोल देन है। और ,इसी कारण से भारत को विश्व की आध्यात्मिक राजधानी भी कहा जाता है।तो आइये,समझने का प्रयास करते हैं कि ध्यान क्या है? "ध्यान" को अलग -अलग विचारकों ने अलग -अलग ढंग से समझाने का प्रयास किया:
A)"ध्यान" आनंद का कुआं है।जिस प्रकार एक कुआं खोदने के लिए काफी मेहनत कन्नी पड़ती है , कई दिन तक खुदाई करनी पड़ती है। हो सकता है, खुदाई में एक माह भी लग जाए ;लेकिन, जब एक बार कुआँ खुद जाता है ,तो उसमें  से जब चाहें पानी निकाल कर अपनी प्यास बुझाई जा सकती है।ठीक इसी प्रकार,जब ध्यान सीखने का प्रारम्भ किया जाता है तो प्रारम्भ  में  हो सकता है कि ध्यान की विधिओं में पारंगत होने में एक माह लग जाए ,किन्तु फिर जब भी आनंद का अनुभव  करना हो तो वह ध्यान में बैठने से तुरंत प्राप्त हो जाता है। एक बार ध्यान करने का अभ्यास हो जाने के पश्चात् दुःख एवं असमंजस की स्थिति में ध्यान करने से मनुष्य पुनः आनंद की स्थिति का अनुभव आसानी से कर सकता है। 
 B)जैसे एक गोताखोर समुद्र की गहराईओं में उतर जाता है, वैसे ही ध्यान करने वाला अपने भीतर की गहराईओं में उतर जाता है। 
जब एक बालक पैदा होता है तो वह विचार शून्य होता है। जैसे -जैसे वह बड़ा होता है,  हैंउसे अक्षर बोलने आने लगते हैं जैसे क ,ख ,ग। ..इत्यादि ,जिन्हे उसे सिखाया जाता है। फिर हम उसे शब्द बोलना सिखाते हैं जैसे पापा,माँ,दादा,दादी,चाचा,मामा। ..इत्यादि। इसके बाद बालक वाक्य बनाना सीखता है और फिर अर्थ सहित वाकया बनाना सीख जाता है। यह अर्थ सहित वाक्य ही विचार कहलाते हैं। अब , विचार बालक के मन में चलने लगते हैं। और जब बालक बड़ा हो जाता है,तो यह विचार इतनी अधिकता में उसके मस्तिष्क में चलने लगते हैं कि  हम कहते हैं बालक DISTRACT हो रहा है। यह बालक बहुत अधिक चंचल है ,इसे अपने विचारों पको नियंत्रित करने की आवयश्यकता है। अर्थात, बालक को एक बार फिर से विचारशून्य करने की आवयश्यकता पड़ने लगती है। तो ,पहले हमे सिखाया जाता है,विचारों को उत्पन्न करना और फिर हमे सिखाया जाता है अपने को विचार  शून्य करना। जो, कि "ध्यान" के माध्यम से ही संभव है। 

C)क्या आपने एक नदी को बहते हुए देखा है? विचारों का प्रवाह एक नदी के बहाव के सामान है। जब हम आँखें बंद करके बैठते हैं ,तो प्रारम्भ में हमभी उसी बहाव में बहाने लगते हैं,किन्तु फिर जब हम प्रयास करते हैं की हम इस बहाव से अपने को अलग कर लें और इस नदी के तट पर बैठ कर बहाव को केवल देखते रहें,तो क्या होता है?हम इस बहाव के साक्षी हो जात्रे हैं, हम बाहर से इसे देखते हैं। और, जब ऐसा होने लगता है तो विचार व्यवस्थित होने लगते हैं, वे इधर उधर भागना बंद कर देते हैं और एक दिशा में चलने लगते हैं। धीरे धीरे, विचारों की संख्या घटने लगती है,और वे हमारे नियंत्रण में आने लगते हैं। अब ,ऐसा समय आने लगता है की हमे , दो विचारों के बीच के GAP का ,रिक्त स्थान का अहसास होना प्रारम्भ हो जाता है। और फिर,यह रिक्त स्थान बढ़ने लगता है और विचार बिलकुल समाप्त होने लगते हैं,और अंत में केवल रिक्त स्थान ही बचता है,शून्य की अवस्था ही बचती है।

D)कुछ विचारकों के अनुसार "ध्यान " अंतर्मुखी होने का एक साधन है ;अर्थात ,जब हम आँखें बंद करके बैठते हैं तो हमे अपने स्वरुप का भान होने लगता है।  जैसे ,एक दर्पण में देखने से हमें अपना बाह्य स्वरुप दीखता है ,ऐसे ही ऑंखें बंद करते ही हमारा भीतरी दर्पण सक्रिय (ACTIVATE) हो जाता है ,जो हमे हमारी असली तस्वीर दिखाता है। यदि , हमारे माता पिता ,भाई बंधु इत्यादि हमारी कमियां हमें बताते हैं तो हमें बहुत बुरा लगता है ,किन्तु यदि ध्यान की अवस्था में हमारी कमियां हमें  स्वयं दिखने लगें तो उन्नति करना हमारे लिया बहुत सरल हो जाता है। क्या किसी के लिए बिना कमियां दूर किये बिना उन्नति करना संभव है???अतः , जीवन में आगे बढ़ते रहने के लिए "ध्यान" को पकड़ लेने में ही समझदारी है। क्या एक गंदे दर्पण में अपनी स्पष्ट तस्वीर देख पाना संभव है??? नहीं न , पहले दर्पण को साफ करना पड़ता है, तब हमें अपना स्वरुप स्पष्ट दीखता है।  इसी प्रकार जब हमारा मन विचारशून्य हो जाता है , तभी हमें अपने असली स्वरुप का भान होता है। 

योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः। ---योग दर्शन 
तदा दृष्टु :स्वरूपे अवस्थानाम। ----योग दर्शन 

E)जिस प्रकार एक कंप्यूटर से मनचाहे RESULTS प्राप्त करने के लिए उसमे सॉफ्टवेयर डालने की ज़रुरत होती है , उसी प्रकार अपने आप से या स्वयं  से मनचाहे RESULTS प्राप्त करने के लिए हमें जिस प्रक्रिया की आवयश्यकता होती है उसे "ध्यान" कहते हैं। जो सॉफ्टवेयर प्रोग्राम्स हम अपने भीतर ध्यान की अवस्था में डाल सकते हैं , उन्हें हम छोटी-छोटी "प्रार्थनाओं " ," शिवसङ्कल्पों" या "POSITIVE AFFIRMATIONS " का नाम भी दे सकते हैं। आधुनिक परिप्रेक्ष्य  में मनचाहे RESULTS की प्राप्ति के लिए हम ध्यान की अवस्था में जाकर "POSITIVE AFFIRMATIONS"को "POSITIVE IMAGING" के साथ दोहराने से जीवन में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त होती है। 


४.ईश्वर निराकार है। अर्थात ईश्वर का कोई आकार नहीं है। चूंकि , ईश्वर विषयातीत है ,वह गंध,रस ,रूप,स्पर्श एवं शब्द से परे है।अर्थात , ईश्वर को नासिका से महसूस नहीं किया जा सकता,उसेका जिव्हा से स्वाद नहीं चखा जा सकता ,उसको आँखों से देखा नहीं जा सकता, उसको त्वचा से स्पर्श नहीं किया जा सकता एवं उसको शब्द द्वारा सुना नहीं जा सकता।  फिर, आखिर उसका अनुभव करने का क्या उपाय है?उसका अनुभव तो केवल "योग" द्वारा आत्मा एवं परमात्मा के मिलन  द्वारा ही संभव है। ऐसा "समाधि " की अवस्था में ही संभव है ,और मजे की बात यह है, कि ENGLISH भाषा में "समाधि" शब्द का कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है। 


 ५.ईश्वर सर्वशक्तिमान है। ईश्वर में अनंत शक्ति है और वह अपने कार्यों को अपनी ही शक्तियों से करता है। अर्थात , अपने कार्यों को करने के लिए उसे किसी भी बाह्य शक्ति की सययता की आवयश्यकता नहीं है। ईश्वर के प्रमुख कार्य निम्न हैं :
a )संसार की उत्पत्ति करना। b )संसार का पालन करना ,c )प्रलय करना या संसार का विनाश करना ,d )जीवों के कर्मों के ठीक ठाक फल देना ,एवं e)जीवों को चारों  वेदों का ज्ञान देना। 

६. ईश्वर न्यायकारी है :ईश्वर इस ब्रम्हांड के समस्त जीवों को उनके कर्मों के हिसाब से फल देकर न्याय करता है। कभी-कभी हमें ऐसा लगता है की हमारे साथ अन्याय हुआ है ,किन्तु यदि हम स्वयं को ईश्वर के चरणों में समर्पित कर दें तो वह हमारा सही मार्गदर्शन करके उलझनों और दुखों से बहार निकल देता है। यदि हम यह स्वीकार  कर के अपने कर्मों को करना प्रारम्भ कर दें ,कि कर्म करना मेरे हाथ में है किन्तु फल देना ईश्वर के हाथ में है ,तो निश्चित रूप से उसके न्याय पर हमें कभी भी संदेह नहीं होगा। रोज़ रात को सोने से पहले यदि हम अपने दिन भर के क्रिया कलापों को ,अपनी सम्पूर्ण दिनचर्या को ईश्वर को समर्पित करके सोएं तो धीरे- धीरे हमे ईश्वरीय मार्गदर्शन प्राप्त होना शुरू हो जायेगा और हमारी दिनचर्या रोज़ पहले से बेहतर होती जाएगी। 
७.ईश्वर दयालु है :a )ईश्वर का न्याय ही उसकी दयालुता है। यदि एक बालक पढाई के समय माता-पिता का कहना न मान कर अपनी मनमानी करता है और अपना समय टीवी  देखने में या मोबाइल गेम्स में नष्ट करता है , और उसकी माँ यदि उसे दंड देती है तो वह दंड उसके भले के लिए ही होता है। अर्थात, बालक की माँ उसके साथ कठोर व्यवहार करके भी उस बालक के प्रति दयालुता दर्शाती है। क्योंकि, यदि इस समय बालक के साथ कठोर व्यवहार न किया जाए तो बालक का भविष्य खराब हो सकता है। 
b ) यदि ,बालक माता -पिता के निर्देशनुसार कड़ी मेहनत करता है ,तो माता उसे प्रेम से सब कुछ खिलाती -पिलाती है ; यह दयालुता पूर्ण प्रेम भी भी उसका न्यायपूर्ण व्यवहार है। और फिर जब उस बालक का भविष्य उज्जवल बनता है ,तो भी उसको उत्तम फल मिलता है ,जो कि ईश्वर की दयालुता है। 
c )ईश्वर ने हमारे भोग के लिए इस प्रकृति की रचना की है। इसके पंचतत्व अर्थात "पृथ्वी,जल ,अग्नि ,वायु और आकाश " द्वारा प्रदत्त संसाधनों एवं ऐश्वर्यों को हम भोगते हैं। ईश्वर ने प्रचुर मात्रा में हमें वायु प्रदान की है जिससे 


कि  हम श्वास ले सकें, वो भी एकदम मुफ्त-------जब हमारा कोई परिचित हॉस्पिटल में एडमिट हो जाता है और वेंटीलेटर पर पहुँच जाता है ,तो हमें मुफ्त में मिलने वाली शुध्द ऑक्सीजन की वैल्यू का पता चलता है। गर्मी में जब वायु का प्रवाह एकदम रुक जाता है ,तब हमें ठंडी-ठंडी चलने वाली वायु की कमी मेसूस होने लगती है। 
ईश्वर ने हमें जल  
भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध करा रखा है;यदि घर में एक दिन भी पानी की समस्या हो जाए ,जैसे कि पानी की मोटर खराब हो जाए  इत्यादि ,तो जब हम नहा नहीं पाते, शौचालय साफ नहीं हो पाते, पीने का पानी भी इधर-उधर से भर कर लाना पड़ता है, तब हमें पानी की कीमत का एहसास होता है। 
इसी प्रकार, चूंकि सूर्य  रोज़ाना उदय होता है ,हमें उसके अग्निस्वरूप होने का भान ही नहीं होता। हाँ ,यदि कुछ दिन के लिए सूर्य निकलना बंद हो जाये ,तब हमें पता चलती है प्रकाश और उष्म ऊर्जा की एहमियत।इसी प्रकार पृथ्वी हमारी माता है।
पृथ्वी पर रहकर ही हम जीना सीखते हैं। पृथ्वी के गर्भ से हमें हर प्रकार के खनिज पदार्थ ,जैसे कि लौह, ताम्बा,जस्ता,कोयला और यहाँ तक कि जल भी उपलब्ध हो जाता है। पृथ्वी हमें पेड़ ,पौधे , फल,  सब्ज़ी  इत्याद उपलब्ध कराती है ,जिससे हमें जीवन मिलता है। इसी प्रकार आकाश तत्व का भी बहुत महत्त्व  है।
 सूर्य का प्रकाश हम तक आकाश तत्व के कारण ही पहुँच पाता  है। इसी प्रकाश "शब्द " आकाश तत्व के कारण ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँच पाटा है,और हम एक दूसरे की बात सुन पाते हैं।ईश्वर के सर्वव्यापक स्वरुप की उपमा भी आकाश तत्व से की जाती है।




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